भारत की 151 अरब डॉलर की टेक क्रांति: ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स का उदय
कैसे भारत ने सिर्फ एक दशक में बैक-ऑफिस से वैश्विक इनोवेशन हब तक की छलांग लगाई
भारत ने पिछले एक दशक में जिस रफ्तार से आर्थिक प्रगति की है, वह पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बन चुकी है। साल 2014 में भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, और आज 2025 तक यह चौथे स्थान पर पहुँच गया है। इस विकास के पीछे कई कारक हैं, लेकिन सबसे बड़ी ताकत है भारत का सेवा क्षेत्र (Service Sector)। इसी सेवा क्षेत्र का सबसे अहम स्तंभ बनकर उभरे हैं ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs)। ये न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को उजागर करते हैं बल्कि लाखों युवाओं के लिए रोज़गार और अवसर भी पैदा कर रहे हैं।
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) क्या हैं?
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स दरअसल वे कार्यालय हैं जिन्हें बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत जैसे देशों में स्थापित करती हैं। शुरुआत में इनका काम सिर्फ बैक-ऑफिस सेवाएँ देना था जैसे – डेटा एंट्री, अकाउंटिंग, पेरोल, आईटी सपोर्ट और कस्टमर सर्विस। इसी वजह से इन्हें लंबे समय तक “बैक ऑफिस” कहा जाता रहा।
लेकिन धीरे-धीरे इनकी भूमिका बदलती गई। आज 2025 तक ये सिर्फ सपोर्ट सिस्टम नहीं बल्कि इनोवेशन और रिसर्च के बड़े केंद्र बन चुके हैं। माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, गूगल, मेटा, जेपी मॉर्गन जैसी वैश्विक कंपनियों ने भारत में अपने GCC बनाए हैं और वे यहीं से नए उत्पाद, सॉफ़्टवेयर और समाधान तैयार कर रहे हैं।
GCC का विकास: सपोर्ट से स्ट्रैटेजी तक
पिछले दो दशकों में GCCs ने जिस तरह का परिवर्तन किया है, वह वाकई उल्लेखनीय है। शुरुआती दौर में जहाँ इनका ध्यान केवल लागत घटाने और बैक-ऑफिस सेवाओं तक सीमित था, वहीं आज ये:
- सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट
- डेटा एनालिटिक्स और डेटा साइंस
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML)
- साइबर सुरक्षा (Cybersecurity)
- क्लाउड ऑपरेशन्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर
- रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D)
- फाइनेंस, एचआर और लीगल जैसे उच्च स्तरीय प्रोसेस
अब ये केंद्र सीधे-सीधे कंपनियों की वैश्विक रणनीति और इनोवेशन में योगदान कर रहे हैं।
भारत: ग्लोबल GCC कैपिटल
भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा GCC हब बन चुका है। नासकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के कुल टेक्नोलॉजी GCCs में से 17% भारत में हैं। साल 2024 में भारत के GCCs ने लगभग 64.6 अरब डॉलर का राजस्व उत्पन्न किया, जो 2030 तक 100 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
भारत में GCC की स्थिति
- 1700 से अधिक GCCs वर्तमान में भारत में सक्रिय हैं।
- करीब 19 लाख पेशेवर इसमें कार्यरत हैं।
- बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुड़गाँव प्रमुख केंद्र हैं।
- अब ये टियर-2 और टियर-3 शहरों जैसे इंदौर, कोच्चि, अहमदाबाद तक फैल रहे हैं।
भारत को और GCCs की ज़रूरत क्यों है?
युवा प्रतिभा (Talent) का फायदा
भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। यहाँ की 65% से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है। हर साल लगभग 15 लाख इंजीनियर और करोड़ों अन्य ग्रेजुएट तैयार होते हैं। GCCs के माध्यम से इन्हें न केवल रोजगार मिलता है बल्कि उच्च तकनीकी प्रशिक्षण भी मिलता है।
किफ़ायती लागत
भारत में संचालन लागत अमेरिका या यूरोप की तुलना में बहुत कम है। यही वजह है कि विदेशी कंपनियाँ यहाँ केंद्र खोलकर अरबों डॉलर की बचत कर रही हैं।
रोज़गार सृजन और आर्थिक वृद्धि
एक औसत GCC 1500 से 5000 प्रत्यक्ष नौकरियाँ पैदा करता है। अप्रत्यक्ष रूप से और भी कई अवसर उत्पन्न होते हैं। इससे बेरोज़गारी घटती है और आर्थिक विकास तेज़ होता है।
Digital India और स्टार्टअप्स पर प्रभाव
GCCs ने भारत के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूती दी है। ये न केवल बड़े शहरों बल्कि छोटे शहरों में भी डिजिटल नौकरियाँ ला रहे हैं। इसके साथ ही, यहाँ काम करने वाले पेशेवर बाद में स्टार्टअप शुरू करते हैं और देश को आत्मनिर्भर बनाते हैं।
आप कैसे बन सकते हैं इस क्रांति का हिस्सा?
अगर आप युवा हैं और करियर में आगे बढ़ना चाहते हैं तो आपको इन तकनीकों पर ध्यान देना चाहिए:
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)
- मशीन लर्निंग (ML)
- क्लाउड कंप्यूटिंग
- डेटा एनालिटिक्स और साइंस
- साइबर सुरक्षा
इन स्किल्स की मांग आने वाले कई वर्षों तक बनी रहेगी।
निष्कर्ष
भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स का विकास केवल आर्थिक कहानी नहीं है, यह सामाजिक और तकनीकी परिवर्तन की गाथा भी है। कभी “बैक ऑफिस” कहलाने वाले ये केंद्र आज इनोवेशन और रिसर्च के पर्याय बन गए हैं। इनसे न केवल अरबों डॉलर का निवेश आ रहा है बल्कि लाखों नौकरियाँ और नई तकनीक भी भारत में जन्म ले रही है।
अगर भारत इसी दिशा में आगे बढ़ता रहा तो आने वाले वर्षों में यह न केवल दुनिया का सबसे बड़ा GCC हब होगा बल्कि वैश्विक तकनीकी नेतृत्वकर्ता भी बनेगा।
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